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सूत्र-विभाग-१८. 'शिक्षाद्रत' निबन्ध
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प्र. : पहले सामायिक ली हुई हो और पीछे पौषध की भावना जगे, तो सामायिक पाल' कर पौषध लें या सीवे ही ? .
उ० : सीधे ही। क्योंकि पालकर लेने से बीच मे अव्रत लगता है, कदाचित् पालते-पालते उसकी भावना मन्द भी हो सकती है।
प्र० : पौषध लेने के पश्चात् सामायिक का काल श्रा जाने पर सामायिक पालें या नहीं ?
उ० सामायिक विधिवत् न पाले, क्योकि पौषध चल रहा है। पर सामायिक-पूर्ति की स्मृति के लिए नमस्कार मत्र गिन लें, जिससे फिर निद्रा, आहार, निहारादि कर सके।
प्र० · पौषध में सामायिक करें या नहीं ?
उ० · करना सामान्यतः विशेष लाभप्रद नही है। परन्तु यदि कोई 'निद्रा आहार, निहार, पालवन आदि इतने समय नही करूगा।' आदि के रूप सामायिक करे, तो वह सामायिक कर सकता है।
'शिक्षावत' निबंध
१. सूक्त : श्रावक जितने मुहूर्त तक सामायिक करता है, उतने मुहूर्त के लिए वह साधु के समान हो जाता है। २. प्रतिदिन दिशावकाशिक करने से (१४ 'नियम करने से मेरू जितना पाप घटकर राई. जितना पाप रह जाता है। ३ प्रतिमास निरतिचार छह पौषध करने पर श्रावक को १. अपूर्व धर्म-चिन्तन, २ अपूर्व मुफलवान् शुभ स्वप्न-दर्शन,