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सुवोध जैन पाठमाला - भाग २
: प्रत्याख्यान करता हूँ
: अस्त्र, जैसे मूशल आदि को काम मे
: लेने रूप सावद्य योग सेवने का
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का पच्चवखारण
४. सत्य - मुसलादि सावज्ज-जोग सेवन
का पच्चवखारण
: प्रत्याख्यान करता हूँ
जाव अहोरतं पज्जुवासामि । दुविह तिविहेर न करेमि, न कारवेमि, मरणसा, वयसा, कायसा ।
मनोरथ पाठ
ऐसी मेरी श्रहरणा प्ररूपणा है, पौषध का श्रवसर श्राये, पौषध करूँ, तब फरसना करके शुद्ध होऊँ ।
अतिचार पाठ
ऐसे ग्यारहवें प्रतिपूर्ण पौषध व्रत के पंच श्रइयारा जारिणयव्वा न समायरियन्वा तं जहा-ते श्रालोउं -
ग्यारहवे प्रतिपूर्ण पौषध व्रत के विषय मे जो कोई प्रतिचार लगा हो, तो प्रालाउ -
१. अप्पडिले हिय - दुष्पडिले हिय : पौषध मे गय्या-सथारा न देखा सेज्जा- संथारए ( न प्रति लेखा ) हो या अच्छी तरह ( विधिसे ) न देखा हो ।
२ अप्पमज्जिय- दुप्पमज्जिय: पूँजा न हो या अच्छी तरह सेज्जासथारए (विधि) से पंजा न हो ।
तिस्स भते ।
४.।
दोनों स्थानों पर इतना पाठ और मिलाकर इस व्रत पाठ से पौषध लिया जाता है । शेष विधि सामायिक के समान ।
शेष
इस प्रतिचार व प्रतिक्रमरण पाठ से पौषध पाला जाता है । विधि सामायिक पालने के समान है । मित्रता यह है कि 'सम्म के पहले ( पडिपुण) पोसह' बोलना चाहिए ।
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