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________________ सूत्र विभाग-१८ 'पौषधव्रत' व्रत पाठ [ १०१ २ वस्तुयो का क्रय-विक्रय या ३ मूल वस्तुओं का उत्पादन नही निर्मित करूँगा।' ऐसे प्रत्याख्यान भी लेते है। पाठ १८ अट्ठारहवाँ १६. 'पौषधव्रत' व्रत पाठ ग्यारहवाँ पडिपुण्ण पौषधवत ११. प्रसरण पारण खाइम साइम : ग्यारहवाँ : प्रतिपूर्ण (चउन्विहाहार, निराहार) • आत्मा का विशेष पोषक व्रत : अशन (अन्नाहार और विगय) : पान (धोवन या गरम जल) : खाद्य (फल, मेवा, औषधि आदि) : स्वाद्य (लोग सुपारी आदि इन चारो आहार) : का प्रत्याख्यान करता हूँ : मैथुन सेवन : का प्रत्याख्यान करता है : मणि, सोना आदि के आभूषण : पहनने का प्रत्याख्यान करता हूँ : फूलमाला पहनने का : (कस्तूरी आदि के) वर्ण-रग का तथा : (चन्दनादि के) विलेपन का . का पच्चक्खारण २ प्रबंभ सेवन का पच्चक्खारण ३ मरिण-सुवग्ण का पच्चक्खाग मालावरगगविलेवरण फिरेमि भते ! पडिपुपण पोसह' ।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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