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मूत्र-विभाग- १७ 'दिशावका शिक व्रत' प्रश्नोत्तरी [ ६६
४. रूवाणुवाए
५. बहिया पुग्गल - पक्खेवे
जो मे देवसियो श्रइयारो को
: रूप ( या अंगुली आदि) दिखाकर अपने भाव प्रकट किये हो
: ककर आदि ( बाहर ) फेककर दूसरो को बुलाया हो
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: इन अतिचारो मे से मुझे जो कोई : दिन सम्बन्धी अतिचार लगा हो, तो
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तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
'दिशावकाशिक व्रत' प्रश्नोत्तरी
प्र० दिशावकाशिक व्रत किसे कहते हैं ?
उ० छठे व्रत मे, यावज्जीवन, वर्ष, चातुर्मास ग्रादि के लिए जो दिशा को मर्यादा की थी, उसका पक्ष, दिन, मुहूर्तादि के लिए और भी अधिक अवकाश ( सक्षेप ) करना तथा जो दिशा मर्यादा एक करण एक योग से की थी, उसे दो करण तीन योग से करना 'दिशावका शिक व्रत' है । इसी प्रकार अन्य भी पहले से लेकर आठवे व्रत तक मे जो भी हिंसा आदि की मर्यादा की, उसे कम करना भी 'दिशावका शक व्रत' मे है |
प्र०. आठो हो व्रतो के संक्षेप का उदाहरण बताइए । - उ० जैसे—'आज मैं सम्पूर्ण दिन या मुहूर्त दो मुहुर्त यदि तक सापराधो त्रस पर भी हाथ भी नही चलाऊँगा
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(अहिंसा), छोटी झूठ भी नही बोलूंगा, मौन रक्खूंगा (सत्य), किसी का तिनका भी बिना पूछे - माँगे नही लूंगा ( अचौर्य), स्त्री का स्पर्श भी नही करूँगा, (ब्रह्मचर्य), ग्रमुक परिमाण से अधिक परिग्रह मिलने पर अपना करके नही रखूंगा ( परिग्रह परिमाण व्रत ) अपने गाँव-नगर से बाहर नही जाऊँगा, गाँव