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सूत्र-विभाग-१७. 'दिशावकासिक व्रत' व्रत पाठ [ ६७
अतिचार पाठाऐसे नववें सामायिक व्रत के पंच नववे सामायिक व्रत के विषय अइयारा जारिगयव्वा न मे जो कोई अतिचार लगा समायरियव्वा तंजहा - ते हो, तो पालोउपालो१. मरण-दुपारणहारणे : मन' २. वय-दुरपरिणहाणे : वचन ३ काय-दुप्परिणहाणे : काया के अशुभ योग प्रवर्ताये हों ४. सामाइयस्स सइ : सामायिक की स्मृति (कब ली ? प्रकररगया
आदि) न की हो, ५ सामाइयस्स अरण- : समय पूर्ण हुए बिना सामायिक चट्ठियस्स करण्यापारी हो, जो मे देवसियो : इन अतिचारो मे से मुझे जो कोई अइयारो को ' दिन सम्बन्धी अतिचार लगा हो, तो
तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
पाठ १७ सत्रहवाँ १५. 'दिशावकासिक व्रत' व्रत पाठ
दसवाँ देसावगासिक व्रता दिन-दिन प्रति प्रभात से प्रारम्भ करके पूर्वादिक छहों दिशा मे जितनी भूमिका की मर्यादा रवखी
इस अतिचार व प्रतिक्रमण पाठ से सामायिक पालरे जाती है । करेमि भते । देसावगासिय ।