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सुवोध जैन पाठमाला-भाग २
पाठ १६ सोहलवा १४. 'सामायिक व्रत' व्रत पाठ
नववा
: नववा सामायिक व्रत । : समभाव की आय वाला व्रत । सावज्ज जोग : सावध (पापसहित) योग का पच्चवखामि
: प्रत्याख्यान करता हूँ। जावनियम
: यावत् (एक मुहूर्त आदि) नियम तक पज्जुधासामि : (इस व्रत का पालन करता हूँ
दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मरणसा वयसा कायसा
मनोरथ पाठ ऐसी मेरी सद्दहणा : 'सामायिक का यह स्वरूप है और
यह करने योग्य है ?' ऐसी मेरी
श्रद्धा है प्ररूपणा तो है : अन्य के समक्ष भी ऐसा ही कहता हूँ
सामायिक का अवसर आये सामायिक करूँ, तव फरसना (पालन) करके शुद्ध (निर्मल) होऊँ।
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करेमि भन्ते । सामाइय' । तस्स भन्ते । • • • ४। दोनों स्थानों पर इतना पाठ और मिला(फर इस प्रत पाठ से सामायिक ली जाती है। *प्राय सामायिक लेकर प्रतिक्रमण किया जाता है, अतः उस समय यह मनोरथ पाठ नहीं बोलना चाहिये।