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सूत्र-विभाग-१५ 'अनर्थ दण्ड प्रत' प्रश्नोत्तरी
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४. संजुत्ताहिगरणे : अधिकरण (हिंसा के साधन) जोड
रक्खा हो, ५. उवभोग-परिभोग : उपभोग-परिभोग (के द्रव्य) अधिक प्राइरित्ते
बढाया हो, जे मे देवसिप्रो : इन अतिचारो मे से मुझे जो कोई अइयारो को दिन सम्बन्धी अतिचार लगा हो, तो
तस्स मिच्छा मि दुक्कड । 'अनर्थ दण्ड व्रत' प्रश्नोत्तरी
प्र० : 'अपध्यान' किसे कहते हैं ?
उ० रौद्र ध्यान करना, बिना कारण प्रार्तध्यान करना तथा सकारण तीव्र पार्तध्यान करना ।
प्र० . 'पमायाचरिए' किसे कहते हैं ?
उ० · जैसे घर, व्यापार, सेवा आदि के कार्य करते समय बिना प्रयोजन हिंसादि पाप न हो, सप्रयोजन विशेष न होइसका ध्यान न रखना। हिंसादि के साधन या निमित्तो को जहाँ-तहाँ, ज्यो-त्यो रख देना। घर, व्यापार, सेवा आदि से बचे हुए अधिकाश समय को इन्द्रियो के विषयो मे (सिनेमा, शतरज आदि मे) व्यय कर देना।
प्र० : शिक्षा, अनुभव प्रादि देने वाले नाटक या सिनेमा प्रादि देखना भी अनर्थदण्ड है क्या ?
__उ० : 'इन्हे देखना सदा सबके लिए अनर्थ दण्ड होता है।' ऐसा एकान्त तो नही है, पर नाटक, सिनेमा आदि अधिकतया विषय, कषाय, विकथा भादि के साधन होते हैं।