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६२ ] ४. पावकम्मोचएसे
: पापयुक्त काम का उपदेश देना
एवं प्राठवाँ श्ररगट्ठा दण्ड- सेवरण का पच्चवखारण जिसमें
भाठ आगार
१. श्राए वा
२. राए वा
३. नाए वा
४. परिवारे वा
५. देवे वा
६. नागे वा
७. भूए वा
८. जक्खे वा
सुबोध जैन पाठमाला - भाग २
: भूत यादि अथवा
: यक्ष आदि व्यन्तर देवो के लिए ग्रथवा : इत्यादि के लिए किया जाने वाला
: अर्थ दण्ड रखकर
: शेष ग्रनर्थ दण्ड का पच्चवखारण
जावज्जीवाए । दुविह तिविहेणं, न करेमि न कारवेमि,
एत्तिएहि प्रागारेहि
अन्नत्थ
मरणसा वयसा कायसा
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: ग्रूपने ( स्वय केले के ) लिए अथवा : राजा (ग्रादि शासको) के लिए अथवा : ज्ञाति ( जाति ग्रादि) के लिए अथवा : सेवक भागीदार आदि के लिए अथवा
: वैमानिक - ज्योतिपी देवो के लिए
: भवनपति देवो के लिए अथवा
प्रतिचार पाठ
ऐसे आठवें अनर्थ दण्ड विरमण आठवे ग्रनर्थं दण्ड विरमण व्रत के पंच श्रइयारा जारिणयव्वा
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न समायरियत्वा तं जहा श्रालोउं१. कंदप्पे
व्रत के विषय मे जो कोई ग्रतिचार लगा हो, तो श्रालोउ
२. फुक्कुइए ३. मोहरिए
ते
: काम विकार पैदा करने वाली (या बढ़ाने वाली ) कथा की हो,
: भण्ड (ज्यो काम ) कुचेष्टा की हो, : मुखरी (निरर्थक) वचन बोला हो,