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सूत्र-विभाग-१५ 'अनर्थ दण्ड व्रत' व्रत पाठ
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की इच्छा और कर्म व्यापार सम्बन्धी आवश्यकता के बन्धन से रहित हो जाता है।
५. कर्त्तव्य : सादा रहन-सहन, सादा भोजन-पान, धूमपानादि व्यसन का त्याग, इन्द्रिय और मन पर अकुश, अल्प आय मे सन्तोष इत्यादि।
६. भावना : सूक्तादि पर विचार करना। भोगोपभोग से दुःख पाने वाले हरिण, पतग, सर्प, मत्स्य, महिष आदि के दृष्टान्तो पर तथा भोगोपभोग के त्यागी धन्ना मुनि, काली महारानी आदि के चरित्रो पर ध्यान देना।
पाठ १५ पन्द्रहवाँ १३. 'अनर्थ दण्ड व्रत' व्रत पाठ
पाठवाँ
: आठवां अरणद्वादण्ड : अनर्थ दण्ड (बिना काम का पाप) विरमरण व्रत। : विरमरण व्रत चउविहे
: चार प्रकार का अरगट्ठा-दण्डे : अनर्थ दण्ड पएरगत्ते-तंजहा : कहा गया है, वह इस प्रकार १. अवज्झारणाचरिए : अप (आर्त रौद्र) ध्यान करना २. पमायाचरिए : प्रमाद करना ३. हिंसप्पयारणे : हिंसा आदि पापो के साधन देना