SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र-विभाग-१४ 'उपभोग परिभोग व्रत' प्रश्नोत्तरी [ ८७ प्र० १३. दवग्गि-दावरणया (दवाग्नि दापनता) किसे कहते है ? . , उ विशेष और उत्तम खेती के लिए खेत मे या सिंह, सर्पादि विनाग के लिए वन मे आग लगाना आदि को। प्र० :-१४. सर-दह-तलाय-सोसरणया (सर-द्रह-तडागशोषणता) किसे कहते हैं ? उ० • जिसमे अप्काय तथा उनके आश्रित स जीवों का महा आरम्भ हो-ऐसे काम को। जैसे सरोवर, गह, तालाब, आदि जलाशयो का पानी निकाल कर उनकी भूमि मे खेती करने के लिए उन्हें सुखाना या प्राय के लिए उनका पानी नहर आदि से खेत अादि मे किसान आदि को बेचना । प्र० - १५. असईजरणपोसण्या (असतीजन पोपणता) किसे कहते हैं ? ... उ० - असत् कार्य करने वालो का व्यापारार्थ पोषण करना । जैसे वेश्यावृत्ति के लिए अनाथ कन्या आदि का पोषण करना । शिकार के लिए शिकारी कुत्तो आदि का पोषण करना । उन्हे शिकारादि के योग्य प्रशिक्षण देना। उनसे वैसे कार्य कराकर प्राजीविका चलाना या उनका वैसा पोषणप्रशिक्षण करके उन्हे वेचना। (अनुकम्पा की दृष्टि से किसी का पोषण करना निषिद्ध नही है।) इस कर्मादान का 'असयति (साधु से अन्य) का पोषण करना।' यह अर्थ अशुद्ध है। प्र० क्या कर्मादान पन्द्रह ही होते है ? उ० : नही, जो सातवे व्रत मे १५ कर्मादान बताये है, उनसे दण्डपाल (जेलर का काम) बडा जुना खेलना आदि जितने
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy