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सुबोध जैन पाठमाला - भाग २
उ० . रसवाले या प्रवाही पदार्थ, जिससे मद वढे व त्रस जीवो की हिंसा यादि हो, उनका क्रय-विक्रय करने को । जैसे मदिरा, मधु, घी, तेल, गुड, घासलेट, पेट्रोल आदि का क्रयविक्रय करना ।
प्र० . ६. विसवारिगज्जे (विषवाणिज्य ) किसे कहते हैं
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उ० : त्रस -स्थावर के घातक पदार्थों का व्यापार करने को । जैसे सख्यादि विष, खड्गादि शस्त्रास्त्र टिड्डी आदि को मारने वाले पाउडर ग्रादि का क्रय-विक्रय करना ।
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Я о १०. केसवाणिज्जे (केश वाणिज्य ) किसे कहते हैं ?
उ० : त्रम जीवो का व्यापार करने को । जैसे चमरीगाय, हाथी, गाय, भैंस, घोड़ा, बैल, आदि पशु, मयूर कबूतर आदि पक्षी, दासादि मनुष्य आदि का क्रय-विक्रय
करना।
प्र० : ११. जन्तपीलकम्मे ( यन्त्र-पीड़न कर्म ) किसे कहते हैं ?
उ० वनस्पतिकायादि को यन्त्र मे पीलने का महारभी काम और जिन यन्त्रो को चलाते हुए त्रस जीव भी पिल जायेंऐसे काम को । जैसे कोल्हू, घानी, झीन आदि में गन्ना, तिल, रूई ग्रादि पीलना, पनचक्को चलाना, मिल चलाना आदि ।
प्र० : १२. निल्लंछकम्मे (निर्लाञ्छन कर्म ) किसे कहते हैं ?
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उ० : मनुष्य, पशु यादि को नपुंसक बनाने का, उनके गोपांग छेदने का, या डाम लगाने का काम करना ।