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सुवोध जैन पाठमाला
४. पर्व - तिथियो को घर मे आरम्भ कम होना ( हरी त्याग की दृष्टि से ) । इत्यादि कई लाभ है । स्वास्थ्य की दृष्टि से पक्व खानेवाले को रोग कम होता है ।
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-भाग २
प्र० : 'मचित्ताहारे' श्रादि पाँच प्रतिचारो से क्या समझना चाहिए ?
३ उपभोग- परिभोग सम्बन्धी जितने भी बोलो की मर्यादा की हो, उनके प्रति मरण के भी सभी अतिचार समभने चाहिएँ ।
प्र० : कर्मादान किसे कहते हैं ?
उ० : जिनसे ज्ञानावरणीयादि कर्मों का अधिक बन्ध हो, ऐसे कार्य या व्यापार को ।
प्र० : १. इगाल - कम्मे (गार कर्म) किसे कहते हैं ?
उ० . जिसमे ग्रग्निकाय का, उसके आश्रित जीवो का और उससे मरने वाले श्रस जीवो का महारम्भ हो, ऐसे काम को । जैसे कोयला, ईंट आदि बना कर बेचना, विजली उत्पादन करके बेचना, लुहार, सुनार, भडभूंजे आदि काम
करना ।
प्र० : २ वरणकम्मे ( वनकर्म) किसे कहते हैं ?
उ० : जिसमे वनस्पतिकाय का और उसके ग्राश्रित त्रस जीवो का महारम्भ हो, ऐसे काम को । जैसे वनो का ठेका लेकर वृक्षादि काट कर बेचना, वृक्ष, फल, फूल, पत्ते हरी घास आदि काट कर बेचना, दाले बनाना, आटा पीसना, चाँवल निकालना आदि ।
प्र० : ३. साडीकम्मे ( शकट कर्म) किसे कहते हैं ?