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________________ ८४ ] सुवोध जैन पाठमाला ४. पर्व - तिथियो को घर मे आरम्भ कम होना ( हरी त्याग की दृष्टि से ) । इत्यादि कई लाभ है । स्वास्थ्य की दृष्टि से पक्व खानेवाले को रोग कम होता है । - -भाग २ प्र० : 'मचित्ताहारे' श्रादि पाँच प्रतिचारो से क्या समझना चाहिए ? ३ उपभोग- परिभोग सम्बन्धी जितने भी बोलो की मर्यादा की हो, उनके प्रति मरण के भी सभी अतिचार समभने चाहिएँ । प्र० : कर्मादान किसे कहते हैं ? उ० : जिनसे ज्ञानावरणीयादि कर्मों का अधिक बन्ध हो, ऐसे कार्य या व्यापार को । प्र० : १. इगाल - कम्मे (गार कर्म) किसे कहते हैं ? उ० . जिसमे ग्रग्निकाय का, उसके आश्रित जीवो का और उससे मरने वाले श्रस जीवो का महारम्भ हो, ऐसे काम को । जैसे कोयला, ईंट आदि बना कर बेचना, विजली उत्पादन करके बेचना, लुहार, सुनार, भडभूंजे आदि काम करना । प्र० : २ वरणकम्मे ( वनकर्म) किसे कहते हैं ? उ० : जिसमे वनस्पतिकाय का और उसके ग्राश्रित त्रस जीवो का महारम्भ हो, ऐसे काम को । जैसे वनो का ठेका लेकर वृक्षादि काट कर बेचना, वृक्ष, फल, फूल, पत्ते हरी घास आदि काट कर बेचना, दाले बनाना, आटा पीसना, चाँवल निकालना आदि । प्र० : ३. साडीकम्मे ( शकट कर्म) किसे कहते हैं ?
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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