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________________ सूत्र-विभाग-१४ उपभोग परिभोग' व्रत पाठ ७६ ५. उन्वट्टरण-विहि : उबटन (योग्य पीठी आदि) की विधि ६. मज्जरण-विहि : स्नान (योग्य जल) की विधि ७. वत्थ-विहि : (पहनने योग्य) वस्त्र की विधि ८. विलेवरण-विहि : विलेपन (योग्य चन्दन आदि) की : विलपन (याग्य चन्द विधि, ६. पुप्फ-विहि : फूल (तथा फूलमाला आदि) की विधि १०. प्राभरण-विहि: (अगूठी आदि) प्राभरण की विधि ११. धूव-विहि : (अगर तगरादि) धूप की विधि ... भोजन में काम आने वाले १२. पेज्ज-विहि : (ध आदि) पेय की विधि १३. भक्खरण-विहि : (घेवर आदि) मिठाई की विधि १४. प्रोदरण-विहि : (राँधे हुए) ओदन (चावल आदि) की विधि १५. सूप-विहि : (मग, चना आदि) सूप (दाल) की विधि (दूध-दही आदि) विकृति की विधि १७, साग-विहि : (भिण्डी आदि सूखे या हरे) शाक की विधि १८. महुर-विहि : (सूखे हरे) मधुर (फल) की विधि १६. जीमण-विहि : (रोटी, पूरी आदि) जीमने के द्रव्यों की विधि २०. पारणीय-विहि : (पीने योग्य) पानी की विधि २१ः मुखवास-विहि : (लोंग, सुपारी आदि) मुखवास विधि २२. वाहण-विहि : (घोडा, मोटर आदि) वाहन की विधि
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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