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________________ ७८ ] सुबोध जैन पाठमाला--भाग २ ५ कर्त्तव्य : पर्यटन की वृत्ति आदि कम करना, राज्यवृद्धि, व्यापार-वृद्धि आदि की भावना मन्द करना, विदेश-स्त्रीकथा आदि न सुनना। ६. भावना : सूक्तादि पर विचार करना । दिशा परिमारण न करने वाले सुभूम पद्मनाभ आदि के चरित्र का चिन्तन करना। पाठ १४ चौदहवाँ । १३. 'उपभोग परिभोग व्रत' व्रत पाठ । सातवां व्रत उपभोग : उपभोग (एक बार ही भोगा जा सके, ___ जैसे अन्न) परिभोग : परिभोग (अनेक बार भोगा जा सके, जैसे वस्त्र) विहि : विधि का (ऐसे पदार्थों की जाति का) पच्चक्खायमारणे : प्रत्याख्यान करते हुए (सख्या, भार, वार, आदि से) १. उल्लरिगया-विहि : (पोछने के) अगोछे की विधि (जाति) २. दंतरण-विहि : दतौन की विधि ३. फल-विहि : (केशादि के उपयोगी) फल की विधि ४ अभंगरण-विहि : अभ्यगन (योग्य तैलादि) की विधि
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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