________________
पाठ १६-तस्सउत्तरी प्रश्नोत्तरी [ ७७ । उ० : नही। मच्छरादि काटने लगे,तो कष्ट सहन करना चाहिए।
कष्ट आने पर उन्हे सहन करने पर ही सच्चा कायोत्सर्ग होता है। ऐसा कायोत्सर्ग ही सच्चा प्रायश्चित्त है। वहो पापो को पूरा धो कर आत्मा को पूरा विशुद्ध बना सकता है। यदि मच्छरादि के काटने से कायोत्सर्ग
पाल लिया जाय, तो वह कायोत्सर्ग का भग कहलाता है। प्र० । 'इच्छाकारेण' या 'लोगस्स' पूरे गिनने के बाद ही
कायोत्सर्ग पाला जाता है, तो पारने के लिए णमो
अरिहतारण' कहने की आवश्यकता क्या है ? उ० : १. कायोत्सर्ग आदि जो भी प्रत्याख्यान (प्रतिज्ञा)
जितने समय के लिए किये जाते हैं, उसमे कुछ और समय बढाने का नियम है, उसे पालने के लिए। यह नियम इसलिए है कि समय से पहले प्रत्याख्यान पालने से जो व्रत भग हो सकता है, वह न हो सके तथा २ व्यवस्थित
कार्य-पद्धति के लिए। प्र० : जहाँ कायोत्सर्ग किया हो, वहाँ आग लग जाय, बाढ आ
जाय, डाकू लूटने लगे, राजा का उपद्रव हो जाय, भीत, छत आदि गिरने लगे, सर्प, सिंह आ जाय-तो उस समय प्राण-रक्षा के लिए वहाँ से हटकर दूर जाना पडे,
तो कायोत्सर्ग का भङ्ग होता है या नही? उ० : जहाँ तक हो सके, मृत्यु तक का भी भय छोड़कर . कायोत्सर्ग मे दृढ रहना श्रेष्ठ है, परन्तु यदि कोई प्राणरक्षा के लिए ऐसा कर ले, तो कायोत्सर्ग भड्न नही
माना जाता। प्र० : प्राणी-रक्षा के लिए-जैसे बिल्ली चूहे को पकडती हो,
तो बिल्ली से छुड़ाकर चूहे की रक्षा के लिए कायोत्सर्ग