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७६ ] जन सुबोध पाठमाला - भाग १ प्र० : गल्य (मोक्ष-मार्ग के काँटे) कितने है ? उ० : तीन हैं-१ माया-शल्य (क्रोध, मान, माया, लोभा
२. निदान-शल्य (धर्मकरणी का मोक्ष के अलावा
फल चाहना) ३. मिथ्यादर्शन-शल्य (मिथ्यात्व)। प्र० : आगार (ग्राकार) किसे कहते है ? उ० : प्रत्याख्यान (पचक्खाण) मे रहने वाली १. मर्यादा तथा
२. छूट को। प्र० : कायोत्सर्ग मे यागार क्यो रक्खे जाते हैं ? उ० : क्योकि १. जीव-रक्षा आदि के लिए कायोत्सर्ग वीच में
छोडना पडता है तथा २. कायोत्सर्ग मे श्वास आदि रोके
नही जा सकते। प्र० : प्रकट 'इच्छाकारेग' से एक वार पाप धुल जाने पर
दुवारा कायोत्सर्ग से और उसमे 'इच्छाकारेण' या 'लोगस्स' से पापो का नाश करने की आवश्यकता
क्या है ? उ० : जैसे अधिक मैला कपड़ा एक बार पानी से धोने से पूरा
स्वच्छ नही होता, उसे दुवारा क्षार (सोडा, सावुन
आदि) लगा कर धोना पड़ता है। उसी प्रकार आत्मारूप कपड़ा अधिक पाप वाला होने पर प्रकट पालोचनारूप पानी से पूरा धुल नही पाता, इसलिए उसे कायोत्सर्ग और उसमे 'इच्छाकारेणं' या लोगस्स-रूप क्षार
लगाकर दुवारा पूरा स्वच्छ बनाना पड़ता है। प्र० : मच्छर आदि काटने लगे, तो इच्छाकारेण या लोगस्स
पूरा होने से पहले ही 'णमो अरिहतारण' कह कर कायोत्सर्ग पाला जा सकता है क्या?