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जन सुवोध पाठमाला--भाग १
वीच में ही छोडा जा सकता है या नहीं ? अथवा स्वधर्मी की सेवा के लिए-जैसे वे मूर्छा खाकर गिर रहे हो या गिर पड़े हो, तो उन्हें उठाने-करने के
लिए कायोत्सर्ग वीच मे ही छोडा जा सकता है या नही ? उ० : १. प्रारगी-रक्षा, २ स्वधर्मी-सेवा आदि के लिए तत्काल
कायोत्सर्ग बीच में ही छोड देना चाहिए। इससे कायोत्सर्ग भङ्ग नहीं होता, क्योंकि कायोत्सर्ग मे ऐसी मर्यादा रक्खी जाती है। परन्तु इन कार्यों को समाप्त
करके पुनः कायोत्सर्ग कर लेना चाहिए। प्र० : कायोत्सर्ग समान होने पर क्या बोलना चाहिए ? उ० . एक प्रकट नमस्कार मत्र तथा ध्यान पारने का पाठ। प्र० : ध्यान पारने का पाठ वताइए। उ० : कायोत्सर्ग मे पात-ध्यान या रौद्र-ध्यान ध्याया हो,
धर्म-ध्यान (या शुक्ल-ध्यान) न ध्याया हो, कायोत्सर्ग मे मन-वचन-काया चलित हुई हो, तो 'तस्स मिच्छा मि दुक्कड'।
पाठ २० बोसवाँ.
५. लोगस्स : चतुविशतिस्तव का पाठ
लोगस्स उज्जोयगरे, धम्म-तित्थयरे जिणे। अरिहन्ते कित्तइस्सं, चउवीसं .पि केवलो ॥१॥