SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ ] जैन सुवोध पाठमाला--भाग १ श्लेप्म (कफ) की। संचालेहि संचार। १३. दिदि-दृष्टि (आँखों का, पलको का) संचालेहि सचार। एवमाइएहि = इत्यादि । प्रागारेहि = आगारों को। अन्नत्थ = छोड़कर। क्या हो ? मे= मेरा। काउसगो-कायोत्सर्ग। प्रभग्गो थोड़ा भी। खण्डित न हो। अविराहिलो पूरा नष्ट न हो। कब तक? जाव:जब तक। अरिहताण-अरिहंत भगवंतारणं 3 भगवान् को। नमुक्कारेणं नमस्कार करके (णमो अरिहंताण कहकर)। न(कायोत्सर्ग को) न। पारेमि=पार लूं। । तब तक कायोत्सर्ग कैसे ? ताव-तब तककायंकाया को। ठाणेरणं- (एक स्थान पर) स्थिर करके। मोरणेणं- ( वचन से) मौन करके । झारणे = (मन से) ध्यान करके (रहूँगा)। अप्पारणं-(पहले की अपनी पापी) प्रात्मा को। वोसिरामिवोसिराता हूँ।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy