________________
६६ ]
जैन सुवोध पाठमाला - भाग १
गुरुदेव को थाना मिलने पर
}
इच्छं = आपकी आज्ञा प्रमाण है ।
उद्देश्य
इरिया बहियाए = मार्ग में चलने से हुई । विराहरणाए = विराधना से । पडिक्कमिचं = प्रतिक्रमण करने की ।
इच्छामि = इच्छा
करता हूँ ।
विराधित जीवो के कुछ नाम
गमरणागमरणे = जाने-आने में । पाखकुमणे = किसी (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) प्रारणी को दवाया हो । वीयकमरणे = वीज को दबाया हो । हरियाणे - हरित (वनस्पति) को दवाया हो । श्रीसा = प्रोस | उत्तिग = कीड़ी नगरा । पराग = पांच रग की काई (लोलण फूलरण) । पानी । मट्टी = सचित्त मिट्टी या । मक्कडा संतारणा = मकड़ी के जाले को संकमणे = कुचला हो । इत्यादि प्रकार से,
दग= सचित्त
विराधित सभी जीव
मे = मैंने । जे = जिन । जीवा = जोवो की । विराहिया = विराधना की हो । चाहें वे,
विराधित जीवो को ५ जाति
१ एगिंदिया = एक इन्द्रिय वाले । २. बेइंदिया = दो इन्द्रिय वाले । ३. तेइ दिया = तीन इन्द्रिय वाले । ४ चउरिदिया = चार इन्द्रिय वाले | या ५. पचिदिया = पाँच इन्द्रिय वाले हो । उनको,