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५० ] जैन सुबोध पाठमाला- भाग १ विजय : १ भगवान् की स्तुति आदि कई वाते हाथ जोड कर
की जाती हैं और उस समय अधिकतर हाथ मुंह से दूर रहते हैं। यदि हाथ मे मुख-वस्त्रिका रक्खी जाय, तो उस समय मुंह पर मुंहपत्ति नहीं रह सकती। २ दो-तीन घण्टे तक लगातार सामायिक मे बोलना पडे, तो हाथ के सहारे मुंह पर मुंहपत्ति रखना कठिन हो जाता है। ३. 'मैं अभी नहीं बोल रहा हूँ'--यह सोच कर यदि हाथ की मुंहपत्ति इधर-उधर रखने मे आ जाय, इधर इतने में यदि खाँसी, जभाई आदि या जाय और दंढने से समय पर मुंहपत्ति न मिले, तो अयतना (जीवहिंसा) होती है। ४ हाथ मे मुंहपत्ति रखने वाला, जव-जव आवश्यक हो, तब तक मुख-बस्त्रिका को मुंह पर लगा लेने का ध्यान रख ले यह सम्भव नही, क्योकि सामान्यतया मनुष्यो मे इतना उपयोग (विवेक) नहीं रहता । इसलिए मुखवस्त्रिका मे डोरा डाल कर उसे मुंह पर
वॉधना आवश्यक है। जयन्त : अच्छा, और यह छोटे भाडू-सा क्या है तथा यह
किस काम में आता है ? विजय : इसे 'पूजनी' कहते है। १ पासन विछाने से पहले
इसके द्वारा भूमि को पूज ली जाती है, जिससे कोई जीव अासन के नीचे दब कर मर न जाय। २ कोई कीडी-मकौडी'ग्रादि जन्तु आसन पर चढ़ जाय, तो इससे उसे धीरे-से दूर कर दिया जाता है। ३ यदि कोई डास-मच्छर हमे काटे, तो हाथ से खुजालने से वह कभी-कभी मर तक जाता है, इससे पहले उसे