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________________ पाठ १४-सामायिक के उपकरण [४६ वायुकाय के जीवो की रक्षा के लिए ऐसी बना कर मुंह पर बाँधी जाती हैं। २. मुख-वस्त्रिका मुंह पर बँधी होने से त्रस जीव मुंह में प्रवेश करके मरते नहीं तथा ३. मुंह का थूक दूसरे पर या पुस्तकों पर गिरता नही इसलिए भी यह मुंह पर बाँधी जाती है। ४. यह मुख-वस्त्रिका जैन धर्म का ध्वज (झण्डा) है-इसलिए भी इसे शरीर के मुख्य भाग मुख पर बाँधी जाती है। जयन्त : मुख-वस्त्रिका पतले कपडे की क्यों नही बनाई जाती है? विजय : मुख-वस्त्रिका पतले कपडे की बनाने पर १. उससे वायु का वेग ठीक रुक नही पाता। २. कभी-कभी वह मुंह में आने लगती है, जिससे बोलने में कठिनता हो जाती है। ३. पतले कपडे की मुंहपत्ति नीचे के दोनो कोनों से बहुत मुड जाती है-इसलिए भी मुख-वस्त्रिका पतले कपड़े की नही बनाई जाती। जयन्त : मुख-वस्त्रिका जाडे कपडे की क्यो नही बनाई जाती है ? विजय : जाडे कपड़े की मुख-वस्त्रिका से बाहर शब्द स्पष्ट और तेज निकल नहीं पाता, इसलिए। जयन्त : यदि जाडे कपडे की चार पट की या पतले कपडे की सोलह पट की मुख-बस्त्रिका बना ली जाय, तो क्या आपत्ति है? विजय : इससे व्यवस्था और एकता भग हो जाती है। जयन्त : यदि मुख-वस्त्रिका को हाथ में पकड कर मुंह के सामने रख ली जाय, तो क्या आपत्ति है ? उसमे डोरा डालना आवश्यक क्यो है ?
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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