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________________ • ४८ जैन सुबोध पाठमाला--भाग १ कर रहा है।' इससे वे हमे कोई सासारिक वात नही कहते या हमारे सामने कोई सासारिक वात नही करते। जयन्त : (मुख-वचिका देखकर) यह क्या है? क्या यह टुकडा पसीना पोछने के लिए है ? परन्तु यह कुछ जाडा है, पसीना पोछने के लिए पतला कपडा अच्छा रहता है। यह कपडा चौकोर भी नहीं और इस कपडे के ऊपर डोरी क्यो है ? विजय : इस कपडे को 'मुख-वस्त्रिका' कहते है। यह अपने अपने हाथ से सोलह अगुल चौडा और इक्कीस अगुल लम्बा होता है। पहले इसको चौडाई को पड़ी करके प्राधी की जाती है। पीछे लम्बाई को दो वार घड़ी करके पाव की जाती है। तब यह कपडा पाठ अंगुल चौड़ा और लगभग पाँच अगुल लम्वा रह जाता है और आठ पट वाला बन जाता है। चार पट ऊपर और चार पट नीचे करके इसके बीच यह डोरी डाली जाती है और फिर (मुंह पर बाँध कर दिखाते हुए) इस प्रकार मुंह पर बाँधी जाती है। जयन्त : इसे ऐसी बना कर मुंह पर क्यो बाँधी जाती है ? विजय : १. हमारे मुंह से बोलते समय जो वेगवान् वायु निकलने लगती है, उससे वाहरी वायु के जीव टकरा कर मर जाते है। वायु भी जीवरूप है। इसे पाठ पट करके मुंह पर बाँधने पर मुंह से जो वायु वेग से निकलती है, वह इस मुख-वस्त्रिका से टकरा कर इधर-उधर फैल जाती है, अत इससे वायु के जीवो की हिंसा रुकती है। इस प्रकार यह मुख-वस्त्रिका
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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