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जैन सुबोध पाठमाला-भाग १ विजय की इच्छा थी-मै जयन्त को भी धार्मिक बनाऊँ, क्योकि धर्म वहत लाभकारी है। यदि मैं उसको भी धार्मिक बना सका, तो वह मेरे लिए इस छोटे गाँव मे धर्म का साथी बन जायगा।
घर पहुँचने पर छोटे भाई जयन्त ने विजय का बहुत स्वागत किया। भोजन-पान आदि हो जाने पर विजय ने जयन्त को अन्य सब वस्तुएँ देने के साथ सामायिक के उपकरण भी दिये। जयन्त : ये सब क्या हैं ? विजयं : धर्म के उपकरण हैं। जयन्त : उपकरण किसे कहते है ? विजय : धर्म की करणी मे सहायक साधनो को। जयन्त : (आसन को देखकर) भय्या | यह कपड़े का जाडा
टुकडा क्या है ? यह किस काम मे आता है ? विजय : इसका नाम 'पासन' है। यह धर्म-क्रिया करते समय
वैठने के काम में आता है। यह लगभग हाथ भर लम्बा-चौडा है, अत: इस पर सुविधा से बैठ सकते हैं। सामायिक नामक ' जो धर्म-क्रिया है, उसमे पैरो को
लम्बा नही किया जाता, अत यह इतना छोटा है। जयन्त : क्या सामायिक गद्दी, गद्देदार कुर्सी, पलग आदि पर
वैठकर नही की जा सकती? विजय : नही । क्योकि उसमे १ अाराम बढ़ता है, २. आलस्य
• बढता है, ३ अहकार वढता है। सामायिक मे
१. परीषह (कष्ट) सहना चाहिए, २. आलस्य नही करना चाहिए व ३ अहकार दूर करना चाहिए।