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२२ ] जैन सुबोध पाठमाला-भाग १ ___ मुनिराज ने आगे लिखा सूत्र सिखलाया, उसका शब्दार्थ सिखलाया और विवेचन करके समझाया।
सम्यक्त्व सूत्र १ अरिहन्तो' मह-देवो, २जावज्जीवं 'सुसाहुणो' गुरुणो। ३'जिरण-पण्णत्तं' तत्तं, इन 'सम्मत्तं' मए गहियं ।। जावल्ली-जब तक जीवन है। मह-मेरे। अरिहन्तोअरिहत । देवो देव है। और सु-सच्चे । साहरणोसाधु । गुरुपो-गुरु है। और जिन-अरिहत द्वारा । परपत्तं- कहा हुआ। तत्तं-धर्म है। इस-इस प्रकार । मए= मैंने। सम्मत्तं-सम्यक्त्व। गहियं = ग्रहण की है।
जब बालको ने सम्यक्त्व सूत्र और उसका अर्थ कण्ठस्थ करके सुनाया, तब मुनिराज ने समझाये हुए विवेचन के आधार पर पूछा · बतायो, आपके देव कौन है ? बालक : अरिहत ही हमारे देव हैं। मुनि : क्यो? वालक : १ अरिहत देव ने अज्ञान, निद्रा, मिथ्यात्व,राग, द्वेष,
अन्तराय आदि आत्मा के सभी प्रान्तरिक शत्रयो को जीत लिया है, इसलिए वे सच्चे देव हैं। जो अरिहत नही है, जिन्होने अब तक अरियो का हनन नही किया है, जो शत्रु सहित है, जो अज्ञानी है, निद्रा लेते है, मिथ्यात्वी हैं, रागी हैं, द्वेषी हैं, दुर्वल हैं, वे सच्चे देव
नही हो सकते। मुनि : आपके गुरु कौन हैं ? बालक : जैन साधु ही हमारे गुरु है !