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पाठ ८-सम्यक्त्व सूत्र [ २३ मुनि : क्यो? बालक : 'जिन' ने आत्मा के सभी शत्रुओ को जोता है,
इसलिए उनका कहा हुआ धर्म, पूर्ण धर्म है और सत्य धर्म है। जैन साधु उस धर्म पर पूरी श्रद्धा रखते है और उसका पूरा पालन करते है, अत वे ही सच्चे साधु है। जो 'जिन' के द्वारा कहे गये धर्म का विश्वास नही करते, उसका पालन नहीं करते, ऐसे साधु अजैन साधु है। वे सच्चे साधु नही हो सकते। जन साधु की क्रिया और अजैन साधु की क्रिया देखने से भी यह प्रकट हो जाता है कि कौन सच्चे है ? एक अहिंसा को ही ले। जैन साधु छहो काय की दया करते है। सचित्त जोवसहित मिट्टी पर पैर भी नही धरते, सचित्त पानी नहीं पीते, प्राग नही तपते, दिया नही जलाते (विजली, बैटरी आदि से चलने वाले दीपक, रेडियो, ध्वनि-प्रसारक आदि का भी उपयोग नही करते ), वायु के लिए पखा आदि नही करते। मुंह पर मुखवस्त्रिका बाँधते है, जिससे मुंह से निकली वेग वाली वायु से सचित्त वायु की हिंसा नही हो। कोई दूसरा वनस्पति को छू जाय, तो उसे अशुद्ध (असूझता) मानकर भिक्षा भी नही लेते। त्रसकाय की रक्षा के लिए जूते नही पहनते, रजोहरण रखते हैं, रात को पहले उससे आगे की भूमि शुद्ध करके फिर पैर रखते है। रात्रि को विहार नहीं करते। वाहन पर भी नही बैठते। ऐसी अहिंसा दूसरे साधुप्रो मे कहाँ है ?