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। पाठ ८-सम्यक्त्व सूत्र
कर अब चौबीस तीर्थंकरों के नाम और गणधरो के नाम भी स्मरण किया करूँगा। तीर्थकरो ने तिरने का मार्ग बताया। गणधरों ने उसे शास्त्र बनाकर हमारे लिए उपकार किया। उन्हे हम कैसे भूले । मैं चतुर्विध संघ से प्रेम रखंगा, क्योकि वे भी तीर्थ के समान है। उनसे मुझे तिरने मे बहुत सहायता मिलेगी। जो हमारे सहायक है, उन्हे सदा ही हृदय मे रखूगा।
पाठ ८ पाठवा
सम्यवाद सूत्र
एक नगर मे कुछ मुनिराज पधारे। बहुत-से लोग उनके दर्शन के लिए गये।
उस नगर मे नेमिचन्द्र आदि लडके परस्पर अच्छी मित्रता रखते थे। एक लडके को जब मुनिराज के समाचार मिले, तब उसने घर-घर घूमकर सभी लड़को को इकट्ठा किया।
इकट्ठे होकर वे सभी मुनिराज के दर्शन के लिए चले। मार्ग मे सबने निश्चय किया कि मुनि-दर्शन का लाभ हमे तव अधिक होगा, जब हम कुछ उनसे सीखे और कण्ठस्थ करे।
मुनियो के स्थान पर पहुँचकर सबने छोटे-बड़े मुनियो को क्रम से तिक्खुत्तो के पाठ से वंदना की। पीछे सबने मिलकर प्रार्थना की कि मुनिराज आप हमे कुछ सिखावे ।