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जैन सुवोध पाठमाला - भाग १
२०
माँ : गरणघर किसे कहते है, बेटा ?
पुत्र : १. जो भगवान् के ( १ ) उत्पाद ( २ ) व्यय और (३) श्रीव्य-इन तीन शब्दो मे सब समझ जाते हैं, २ भगवान् के प्रवचनो को गूंथकर शास्त्र बनाते हैं, ३. तथा साधुग्रो के गरण को धारण करते है, उन्हें गणधर कहते है ।
माँ : वेटा ! श्री इन्द्रभूतिजी के विषय मे और क्या सीखे ? पुत्र : श्री इन्द्रभूतिजी, श्री महावीर स्वामीजी के सबसे पहले
शिष्य हुए। वे सभी साधुग्रो मे वडे थे । उन्हे गौतम गोभ के कारण श्री गौतम स्वामीजी भी कहा जाता है !
माँ : ग्रच्छा वेटा ! ग्रव यह बताओ कि आज हम कितने शास्त्र मानते है और आज किन गणवरजी के बनाये हुए शास्त्र मिलते हैं ?
पुत्र : माँ । हम बत्तीस शास्त्र मानते हैं और ग्राज श्री सुधर्मां स्वामीजी के बनाये हुए गात्र मिलते हैं ।
माँ : हम तो साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका - इन चार को तीर्थ मानते हैं और तुमने भगवान् की वाणी को तीर्थ - बताया - ऐसा क्यो वेटा ?
पुत्र : तिराती तो भगवान् की वारणी ही है, इसलिए तीर्थं वही है । परन्तु वह भगवान् की वाणी साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका के कारण टिकती है । वे स्वय सीखते हैं और दूसरो को सिखाते है, इसलिए इन चारो को भी तीर्थं कहते है ।
माँ : वहुत प्रच्छा वेटा ! ये सब सीखी हुई बाते स्मरण
रखना ।
पुत्र: हाँ, माँ ।
मैं नित्य उठते ही नमस्कार मन्त्र स्मरण