________________
+ - पाठ ६-जैन धर्म
१३ पर भी हो और गुरुपद पर भी हो, उन्हे नमस्कार मन्त्र मे देव से पहले नमस्कार किया जाता है.1, अरिहत देवपद पर तो है ही, उनके अपने हाथ से दीक्षित शिष्यो के लिए वे गुरुपद पर भी है। इस प्रकार दोनों पद वाले अरिहतो को नमस्कार मन्त्र मे सिद्धो
से पहले नमस्कार किया जाता है.। विमल : क्या अरिहत और सिद्ध दोनो एक स्थान पर खड़े
मिल सकते हैं ? उपा० : नही। क्योकि अरिहत इस लोक मे रहते है और
सिद्ध मोक्ष मे पधारे हुए होते है।
अपने प्रश्नो का समाधान हो जाने पर दोनो भाई उपाध्यायश्री को वदनादि करके अपने घर लौट गये ।
पा० ६ छठा जैन धर्म
धर्मनाथ और शान्तिनाय दोनो मित्र-विद्यार्थी थे। दोनो को नमस्कार मत्र और तिक्खुत्तो आता था। वे दोनो जीवअजीव आदि भी जानने लगे थे। एक बार नगर मे आचार्यश्री पधारे। उन्होने उठते ही नमस्कार मत्र का स्मरण किया। प्रातःकाल होने पर प्राचार्यश्री के दर्शन के लिए गये। तिक्खुत्तो के पाठ से वन्दन किया। पीछे पर्युपासना, करते हुए प्रश्न पूछने लगे।