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१२ ] जैन सुबोध पाठमाल-भाग १ उपाध्याय से भी प्राचार्य अधिक उपकारी हैं, क्योंकि वे प्राचार पलवाते है। वे सङ्घ के नायक भी होते है। अतः गुरुयो मे सबसे पहले आचार्यों को, पीछे उपाध्यायों को, अन्त मे सव साधुनो को नमस्कार करना चाहिए।' सुमति : क्या सिद्धो को सदा ही अरिहतों से पीछे ही नमस्कार
करना चाहिए ? उपा० : नहीं। आगे तुम नमस्कार मत्र के समान एक
नमोत्थुरा का पाठ सीखोगे, उसको दो वार बोला जाता है। वहाँ सिद्धों को पहले नमोत्युग से पहले नमस्कार किया जाता है और अरिहतो को दूसरे नमोत्थुरा से पीछे नमस्कार किया जाता है, जिससे यह जानकारी भी हो जाय कि उपकार-दृष्टि से अरिहत
बडे हैं, परन्तु गुण की दृष्टि से सिद्ध ही बड़े हैं। विमल : देव बडे क्यो और गुरु छोटे क्यो ? उपा० : १. देवो ने आत्म-शत्रुयो को जोत लिया है, पर
गुरुयो को जीतना वाकी है। २. देवो मे केवलज्ञान (सम्पूर्ण ज्ञान) आदि प्रकट हो चुके है, पर गुरुयो मे प्रकट होना बाकी है। ३. अरिहतो के उपदेश के कारण ही आज गुरु हैं। यदि अरिहत उपदेश न देते, तो आज हमे गुरु ही नहीं मिलते। ४. गुरु भी देवो को नमस्कार करते हैं और ५ हपे गुरु से
देवो को पहले नमस्कार करना सिखाते है। सुमति : क्या देव से गुरु को सदा ही पोछे नमस्कार किया
जाता है ? उपा० : जो केवल गुरुपद पर ही हो, उन्हे सदा देव से
पीछे ही नमस्कार किया जाता है। परन्तु जो देवपद