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पाठ ५-नमस्कार कम करना चाहिए, क्योकि आज वे हमारे लिए अरिहतो.
और सिद्धो से भी विशेष उपकारी हैं। परन्तु दोनों को एक-दूसरे की बात नही जंची। उन्होने दूसरे दिन अपने गांव मे पधारे उपाध्यायश्री से निर्णय करने का निश्चय किया। पीछे जैसा नमस्कार मत्र का पाठ था, वैसा ही स्मरण कर दोनो सो गये।
दूसरे दिन उठकर नमस्कार मंत्र का स्मरण किया। फिर उपाध्यायश्री के दर्शन के लिए गये। तिक्खुत्तो के पाठ से तीन बार वन्दन किया। फिर दोनो पर्युपासना करने लगे। सुमति ने पूछा~मत्थएण वदामि। नमस्कार किनको पहले करना चाहिए?
उपाध्यायश्री ने दोनो के मन की बात ताड ली। उन्होने समझाया-देखो, पाँच पदो मे पहले दो पद देवों के हैं और पिछले तीन पद गुरु के हैं।
देव बडे होते हैं और गुरु छोटे होते हैं, अतः देवो को पहले नमस्कार करना चाहिए और गुरुप्रो को पीछे नमस्कार करना चाहिए। इसीलिए नमस्कार मत्र में पहले दोनो देवो को और पीछे तीनों गुरुयो को नमस्कार किया गया है।
देवों में यह देखा जाता है कि जो देव हमारे विशेष उपकारी हों, उन्हें पहले वन्दना की जाय। अरिहत सिद्धो से विशेप उपकारी हैं, अत नमस्कार मत्र में उनको पहले नमस्कार किया गया है और सिद्धो को पीछे नमस्कार किया गया है ।
देवों के समान गुरुयो में भी जो अधिक उपकारी हों, उन्हे पहले नमस्कार करना चाहिए। सबकी दृष्टि में सामान्य साधुओ से उपाध्याय अधिक उपकारी हैं, क्योकि वे पढाते हैं।