________________
२६२ ] जैन सुवोध पाठमाला -भाग १ वहत-से साधुओ को भी प्रिय लगता है, इसका क्या कारण है ? १ यह पूर्व भव मे कौन था ? २ इसका पूर्व भव मे क्या नामगोत्र था ? ३ तव इसने कौन-सा अभयदान, अनुकपादान या सुपात्र दान दिया ? ४ इसने कौन-सा पायम्बिलादि मे नीग्स आहारादि भोगा? ५ इसने कौनसे गील या उपवासादि तप का आचरण किया ? ६ अथवा इसने ऐसा
कौन-सा एक भी आर्यवचन (धर्मवचन) सुना और सुनकर उस __ पर श्रद्धा की, जिससे इसने ऐसी ऋद्धि और प्रियता ग्रादि प्राप्त
की ?"
पूर्व भव कथन भगवान् ने कहा- 'गौतम । कुछ वर्षों पहले की बात है। 'हस्तिनापुर' नामक नगर मे २ 'सुमुख' नामक १ एक धनवान्, सुखी और प्रतिष्ठित गृहस्थ रहता था। उस नगर मे 'धर्मघोष' नामक प्राचार्य पधारे। उनके 'सूदत्त' नामक एक मुनि वडे ही तपस्वी थे। वे एक मास तक उपवास करते, फिर एक दिन पारणा करते और फिर एक मास तक उपवास करते, फिर एक दिन पारणा करते। इस प्रकार वे लगातार मास-क्षमण (तप) करते थे।
___ एकवार जिस दिन उनके मास-क्ष मण का पारणा था, उस दिन उन्होने पहले प्रहर (दिन के पहले चौथाई भाग) मे स्वाध्याय किया (शास्त्र-वाचन किया),दूसरे प्रहर मे ध्यान (गास्त्र-चिन्तन) किया और तीसरे प्रहर मे गुरुदेव की आज्ञा लेकर गोचरी के लिए (जैसे गाय उगे हुए घास का थोडा-थोडा भाग चरती है, वैसे प्रत्येक घर से थोडी-थोडी भिक्षा लेने के लिए) निकले । धनवान्-निर्धन सभी कुलो मे गोचरी लेते हुए वे मुनिराज, सुमुग्व गृहस्थ के यहाँ पधारे ।