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________________ कथा-विभाग-७ श्री सुलसा श्राविका [२५६ लोगो ने भी यह सब देखकर सुलसा की सम्यक्त्व-दृढता की भूरि-भूरि प्रशसा की और जो पुरजन सुलसा पर खिन्न हुए थे, वे पुनः सुलसा पर प्रसन्न हो गये । ॥ इति ७ श्री सुलसा श्राविका को कथा समाप्त ॥ शिक्षाएँ १. दृढ सम्यक्त्वी की देव तो क्या, भगवान् भी प्रशसा करते हैं। २ दृढ सम्यक्त्वियो की कसौटियाँ भी होती रहती है। ३. मिथ्यादृष्टि के साथ मिथ्यात्व-प्रवृत्ति भी छोडो। ४ दृढ सम्यक्त्वी दूसरो को भी दृढ बनाता है। ५. दृढ सम्यक्त्वी की भी लौकिक आशाएँ पूर्ण होती हैं। प्रश्न १. सुलसा श्राविका का परिचय दो । २. सुलसा और नाग की पारस्परिक चर्चा वतायो। ३. सुलसा की किस-किसने प्रशसा को ? ४ सुलसा की किस-किसने कैसी-कैसी परीक्षा ली ? ५ सुलसा श्राविका से क्या शिक्षाएं मिलती हैं ?
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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