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२५८ ] जैन मुबोध पाठमाला--भाग १
जव इस समय सब लोगो ने आकर सुलसा से कहा'बधाई है, सुलसा | वधाई है । वे अपूर्व योगिराज तुम्हारे यहाँ पारणा करना चाहते हैं। उन्हे पारणा करायो और भाग्यशाली बनो।' तो उसने अवड की उस विकुर्वणा को जानकर उत्तर दिया-'पुरजनो | मै अरिहत को ही देव, निग्रंथ को ही गुरु और केवली प्ररूपित तत्त्व को हो धर्म मानती हूँ। मुझे इन जैसे साधुनो पर कोई श्रद्धा नहीं है। सच्चे साधु लोग अपने अतिशय का दिखावा और तप की प्रसिद्धि नही करते। 'मै उस घर पारणा करूँगा'-ऐसा नही कहते। एक घर पर भोजन नहीं करते। वे अपनी लब्धियो (ऋद्धियो) को गुप्त रखते हैं, तपश्चर्या को अप्रकट रखते है। विना सूचना दिये घर में प्रवेश करते है और नाना घरो से गोचरी लेकर सयमयात्रा, चलाते हैं । उन्हे पारणा कराने से हो पात्मा सच्ची भाग्यशाली बनती है। ऐसे मिथ्या साधुनो को पारणा कराने से नही वनती। यह उत्तर सुनकर वहुत-से पुरजन बहुत खिन्न हुए। कुछ ने यह उत्तर उस दिव्य-योगीरूपधारी अवड को ले जाकर सुनाया। उस उत्तर को सुनकर अवड को प्रत्यक्ष हा गया कि 'सुलसा सम्यक्त्व मे कितनी दृढ हे ? वह आडम्बर और लोकमत से किस प्रकार अप्रभावित रहती ह ।'
उसने अपना वेप बदला और उन सभी लोगों के साथ नमस्कार-मत्र का उच्चारण करते हुए मुलसा के घर पर पाकर सुलसा के घर मे प्रवेश किया। मुलसा ने उस समय अम्वड को स्वधर्मी समझकर उठकर उसे सत्कार सम्मान दिया। अम्बड ने भी भगवान् द्वारा की गई प्रशसा सुलसा को सुनाई और अपने द्वारा की गई परीक्षा बताकर उसकी स्वय भी बहुत प्रगसा की।