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________________ कथा-विभाग-७ श्री सुलसा श्राविका [ २५७ यह उत्तर सुनकर अबड उसके घर से बिना भिक्षा लिए • लौट गया और नगर के बाहर आया। वहाँ उसने आकाश मे अधर कमल का आसन लगाया और उसके ऊपर बैठकर वह तपश्चर्या करने का दिखावा करने लगा। लोग उसे अधर कमल के आसन पर तपश्चर्या करते देखकर चकित होने लगे। सैकडो-सहस्रो लोग उसके दर्शन के लिए आने-जाने लगे। उसकी पूजा-भक्ति होने लगी और पारणे के लिए निमन्त्रण पर निमन्त्रण आने लगे। परन्तु वह सबको निषेध करता रहा। लोगो ने पूछा-'योगीराज | आप श्री पारणे के लिए किसी का भी निमन्त्रण स्वीकार नही करते, तो क्या हमारा गाँव अभागा है ? आप जैसे महान् अतिशय वाले तपस्वी, हमारे यहाँ से आहार लिए बिना भूखे ही पधार जाएंगे? नही, नही, ऐसा नही हो सकता। हमारे गाँव मे कोई न कोई तो ऐसा पुण्यशाली अवश्य ही होगा, जो आपको पारणा कराकर कृतार्थ बनेगा। आप कृपया उस भाग्यशाली का नाम बतावे, हम अभी उसे सूचित करते हैं।' दिव्य योगी-रूपधारी अबड ने कहा 'पुरजनो | आपके यहाँ सुलसा नामक नागपत्ती है। वह यदि पारणा करावेगी तो मैं उसके यहाँ पारणा करूँगा।' यह सुनकर लोग सुलसा के घर पहुंचे। कुछ स्त्रियाँ, जो उस अंबड को देखकर लौटती थीं, वे सुलसा के पास अवड के अधर कमलासन, उसकी तपश्चर्या और निमन्त्रण के प्रति उपेक्षा भाव की प्रशसा करती। उसके अतिशय का बखान करती, और सुलसा को उसके दर्शन की प्रेरणा करती, पर वह इन ग्राडबरो के चक्कर मे नही आयी।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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