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जैन सुवोध पाठमाला - भाग १
७. श्री सुलसा श्राविका
परिचय
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'राजगृह' मे 'नाग' नामक सारथी रहता था । उसकी पत्नी का नाम था 'सुलसा' । वह श्राविका थी । भगवान् महावीरस्वामी की ३ तीन लाख १८ अट्ठारह हजार श्राविकाओं मे उसका नाम पहला था । क्योकि वह सम्यक्त्व में दृढ थी तथा उसमे दान आदि कई विशिष्ट गुण 'थे }
पुत्र के प्रभाव में
सुलसा को कोई पुत्र उत्पन्न नही हुआ था । पर उसने sari कोई विचार नही किया । प्राय स्त्रियाँ पुत्र न होने पर देव - देवियो की शरण लेती है, उनकी मनौती करता है । मत्रतत्र करवाती हैं। पर उसने देव-देवी की शरण लेने का या मत्र-तत्र करने का मन मे भी विचार नहीं किया। उनकी यह दृढता थी कि - 'पुत्र चाहे हो, चाहे न हो, परन्तु मैं अरिहनदेव के अतिरिक्त अन्य किसी देव को मस्तक नहीं झुकाऊँगी । नमस्कार मंत्र के अतिरिक्त दूसरा मत्र कभी स्मरण नही करूँगी ।'
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मुलसा के पति नाग को पुत्र की बहुत अभिलाषा थी । उसने पुत्र प्राप्ति के लिए अन्य देव-देवियो को पूजना आरम्भ किया व अन्य मत्र-तत्रो का स्मरण चालू किया ।
सुलसा - नाग की चर्चा
जब सुलसा को यह जानकारी हुई, तो उसने अपने पति को समझाया - 'पतिदेव । इन देव देवियो की पूजा छोड़ो ।