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________________ कथा-विभाग-५ श्री अर्जुन-माली (अनगार) [ २३६ अहिसा, बन्ध-निर्जरा आदि पर मार्मिक उपदेश सुनाया। सुनकर अर्जुनमाली को अपने पापो पर बहुत पश्चात्ताप हुआ। उसे वैराग्य आ गया। उसने भगवान् से प्रार्थना की कि 'भगवन् | आप मुझे दीक्षा दे। मुके पापो से उबारे।' भगवान् ने उसे दीक्षा दे दी। प्रादर्श क्षमा अब अर्जुनमाली अर्जुन अनगार (मुनि) बन गये। उन्हे अपने बँधे हुए कर्मों को क्षय कर डालने की बहुत लगन लगी। उन्होने इसके लिए दीक्षा के ही दिन भगवान से अभिग्रह लिया कि-'भगवन् । मै आजीवन बेले-बेले पारणा करूँगा।' भगवान् की आज्ञा पाकर वे अभिग्रह के अनुसार बेले-बेले पारणा करने भी लग गये। अर्जुनमुनि गोचरी लेने स्वय नगर मे जाते। कुछ अनसमझ लोग मुनि बन जाने के बाद भी उनसे घृणा करते । कोई कहता 'अरे | इस हत्यारे ने मेरे बाप को मार डाला ।' कोई चिल्लाती-'अरे । इस निदय ने मेरी माँ मार डाली ।' इस प्रकार पृथक-पृथक् लोग भाई, बहन, बेटी, वह आदि के विषय मे कहते। कोई उन्हे अपशब्द कहता (गाली भी देता)। कोई उन पर थूक भी देता। कोई उन पर ककर-पत्थर आदि भी फेक देता । कोई मार्ग मे चलते उन्हे मार भी देता था। पर अर्जुनमुनि आँख उठाकर भी उन्हे नहीं देखते थे, मन मे भी उनके प्रति द्वेष नही लाते थे। जो-कुछ होता, सब सह लेते थे । कही उन्हे कुछ रोटो का भाग मिल जाता, तो पानी नही मिलता। कही किसी घर कुछ पानी मिल जाता, तो आहार नहीं मिलता। पर वे उदास नही होते थे। वे सोचते-'मुझ
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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