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२३८ ] जन मुत्रोव पाठमाला-भाग १ ने कहा- 'मैं भी तुम्हारे साथ भगवान के दर्शन के लिए चलना चाहता हूँ।' सुदर्शन ने कहा- 'वहुत सुन्दर विचार है तुम्हारा चलो, साथ चलो, बहुत प्रसन्नता की बात है। भगवान् के चरणो मे पहुँच कर तुम्हारा उद्धार हो जायगा। भगवान् सभी को तारने वाले हैं। वे वीतराग है। उन्हे किसी के प्रति राग-द्वेप नहीं होता।'
सुदर्शन ने अर्जनमाली के प्रति घृरणा नहीं की। घृणा की भी क्यो जाय ? कौन ऐसा है, जो किसी भी भव मे हत्यारा न रह चुका हो ? फिर अर्जुनमाली तो स्वय इस भव का हत्यारा भी न था। जो ७ हत्याएँ अर्जुनमाली करना चाहता था, वे तो अर्जुनमाली के अपराधी ही थे। अपराधी की हत्या करने वाला हत्यारा नहीं माना जाता। शेप हत्याएं तो मुख्य करके यक्ष के कारण ही हुई थीं। साथ ही अर्जनमाली के सुधार की सम्भावना भी थी। जिसके मुधार की सम्भावना हो, उसके प्रति घृणा करने से वह सुधरता हया भी रुक जाता है। 'मैं पाप करता हूँ, इसलिए ये मुझ पर वृणा करते है'-इस प्रकार पापी के हृदय मे पाप के प्रति घृणा उत्पन्न करने के लिए कदाचित् पापी पर घृणा की जाय, तो वह कार्य किसी अपेक्षा उचित भी. है, परन्तु जो सुधर ही रहा हो, उस पर घृणा करना तो व्यर्थ ही है। यह बात सुदर्शन भली भॉति जानते थे। इसलिए उन्होने अर्जुनमाली से घृणा नहीं की। वे प्रेम से अर्जुनमाली को साथ मे लिए भगवान महावीरस्वामी के चरणो मे पहुँचे।
दीक्षा : जीवन-परिवर्तन
भगवान् महावीरस्वामी केवल-जानी थे, घट-घट के । अन्तर्यामी थे। उन्हे अर्जुनमाली के उद्धार के योग्य ही हिंसा