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कथा-विभाग---५ श्री अर्जुन-माली (अनगार) [ २३७ का तेज सहन नही हुआ। तब उसने उनके चारो ओर मुद्र घुमाते हुए तीन चक्कर लगाये, फिर भी वह सुदर्शन पर आक्रमण करने का साहस नही कर सका। तब उसने सुदर्शन को टकटकी लगाकर बहुत देर तक देखा, पर सुदर्शन की ऑखो मे कोई अन्तर न आया। तब अन्त मे वह मुद्गरपाणि यक्ष निराश होकर अर्जुनमाली के शरीर को छोड़ कर चला गया। साथ मे अपना मुद्गर भी लेता गया।
यह हुआ अरिहतदेव पर श्रद्धा का फल । जन्म-जन्म और भव-भव तक अरिहतदेव पर क्षद्धा रखने के फल मे आज सुदर्शन की शक्ति कितनी बढ़ गई ?. जिसे अर्जुनमाली भगवान् मानता था, आपत्ति से छुडाने वाला मानता था, जिसने सैकडो की हत्याएँ की, वह यक्ष भी अरिहत-भक्त सूदर्शन श्रावक के सामने हाथ चलाना तो दूर रहा, ठहर भी न सका। उसे अपना मुद्गर लेकर लौट जाना पड़ा।
सुदर्शन का सुयोग अर्जनमाली का शरीर अब तक यक्ष की शक्ति से चलता था। उसकी निजी शक्ति निष्क्रिय थी। अत यक्ष के चले जाते ही अर्जुनमाली धडाम करता हुआ सारे अगो से नीचे गिर पडा।
यह देखकर सुदर्शन ने सोचा कि अब 'उपसर्ग (सकट) दूर हो गया है। इसलिए उन्होने अनशन पार लिया। कुछ समय मे अर्जुनमाली स्वस्थ हुआ। उसने खडे होकर सुदर्शन से पूछा- 'तुम कौन हो? कहाँ जा रहे हो ?' सुदर्शन बोले'मैं अरिहतदेव · भगवान महावीर का श्रावक हूँ और उन्ही के दर्शन के लिए तथा वारणी सुनने के लिए जा रहा हूँ।' अर्जन