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२३६ 1 जैन मुबोध पाठमाला-भाग १ और धर्म के प्रति दृढ-श्रद्धा की सराहना करने लगे-'धन्य है सुदर्शन | - कि, मृत्यु का भय छोड कर भगवान के दर्शन के लिए जा रहा है। हम कायरो को धिक्कार है कि, हम घर मे ही स्त्री की भाँति छूपे बैठे हैं।' कुछ लोग सुदर्शन की हँसी करने लगे-"देखो। इस धर्म के धोरी को। दर्शन करने जा रहा है। पर वाहर निकलते ही ज्यो ही शिर पर अर्जुनमाली का मुद्गर पडेगा, सारा धर्म-कर्म विसर जायगा।' पर सुदर्शन ने किसी भी ओर ध्यान नही दिया। उनके हृदय मे एकमात्र अरिहत-दर्शन की भावना थी।
सुदर्शन नगरी के बाहर निकले। गुरणशील बगीचे का मार्ग मुद्रपाणि यक्ष के मन्दिर के पास से होकर जाता था। वे निर्भय होकर बढे जा रहे थे। दूर से अर्जुनमाली के शरीर मे रहे हुए यक्ष ने उन्हे आते हुए देखा। देखते ही वह क्रुद्ध हुआ और मुद्गर उछालता-घुमाता हुआ उनकी ओर बढा।
सुदर्शन ने भी अर्जुन को आते देख लिया, पर उनका हृदय दृढ था। वे न इधर-उधर भागे, न पीछे मुडे। जहाँ थे, वही खडे रह गये। नीचे की भूमि का प्रतिलेखन किया ( 'जीव आदि हैं या नही " यह देखा)। सिद्धो की और अरिहतदेव श्री भगवान् महावीरस्वामी की स्तुति की (दो नमोत्थुण दिये)। फिर अट्ठारह पाप त्याग कर सागारी ('बच जाऊँ, तो खुला हूँ यह श्रागार सहित) यावज्जीवन (जीवन भर के लिए) अनशन कर लिया।
कुदेव को हार मुद्गरपाणि यक्ष ने सुदर्शन के पास पहुँच कर उन पर मुदर-प्रहार करना चाहा, पर उसे अरिहंत-भक्त सुदर्शन श्रावक