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२३२ ] जैन मुबोध पाठमाला--भाग १ प्रकार सब मिलकर नग्न व्यभिचार कर रहे है । उसे अपनी स्त्री पर भी बहुत क्रोध आया। 'परी । यह कैसी कुलटा है, मैं जो इसका पति हूँ, मेरे कष्ट का इसे कुछ भो दुख नही ? इसे अपने गील का भी विचार नहीं ? कितनो निर्लज्ज है कि 'मेरी ही श्रॉखो के सामने व्यभिचार-सेवन करते हुए इसकी प्रॉखो मे भी कुछ लज्जा नही ?'
उसे सबसे अधिक क्रोध उस मुद्रपाणि यक्ष पर आया । "अरे । जिस मूर्ति की मेरी सात पीढियाँ श्रद्धा-भक्तिपूर्वक पूजा करती चली आई है, मैं भी बचपन से जिसकी श्रद्वा-भक्तिपूर्वक पूजा करता चला आया हूँ, वह मदरपाणि अपने ही मन्दिर मे अपनी ही मूर्ति के सामने मेरी यह दुरवस्था देख रहा है ? और वह मेरी महायता, मेरो रक्षा नहीं करता ? लगता है, मचमच यह केवल लकड़ा है । (मूर्ति लकडे को बनी हुई थी।) परन्तु इसमे मुद्रपाणि भगवान् निवास नही कन्ते ।"
छह पुरुष और पत्नी को हत्या
मुद्रपाणि यक्ष ने अर्जन के ये विचार जाने। वह अर्जुनमाली के शरीर मे घुमा और उसके सारे वन्धन तडातड करके उसी समय तोड डाले। अर्जुन वन्धनमुक्त हया, उसकी आपत्ति-अवस्या दूर हुई। अब जिन पर अर्जुनमाली को क्रोध था, उन्हे नाश करना था। इसलिए मुद्रपाणि यक्ष ने मूर्ति के हाथ मे रहा ३३ मन का लौह मुदर उठाया और उन छहो मित्रो और वन्धुमति पर चलाकर उन्हे मार डाला।
गक्ति या वरदान का दुरुपयोग करने के कारण उन छहो । पुरुषो की मृत्यु हुई तथा शील भङ्ग करने के कारण बन्धुमति की हत्या हुई। इसलिए कभी भी अधर्म का सेवन नही करना