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कथा-विभाग-५ श्री अर्जुन-माली (अनगार) [ २३३ चाहिए तथा धर्म को नही छोडना चाहिए। जो अधर्म-सेवन करते हैं और धर्म को छोड़ देते हैं, उन्हे परभव मे तो कष्ट मिलता ही है, कभी-कभी इस भव मे भी मृत्यु तक का कष्ट उठाना पडता है।
नित्य का हत्यारा
अर्जुनमाली ने जिस काम के लिए यक्ष को बुलाया था, वह काम समाप्त हो चुका था, परन्तु फिर भी यक्ष अर्जुनमाली के शरीर मे पैठा हा राजगृह नगरी के चारों ओर घूमने लगा और नित्य छह पुरुषो और एक स्त्री की हत्या करने लगा।
श्रेणिक को इस बात की सूचना मिली। उन्होने सारे नगर मे घोषणा करवाई कि 'कोई भी विना सावधानी रक्खे वार-वार नगर के बाहर जाना-माना नही करें।' तथा नगर के बडे-बड़े द्वार भी बन्द करवा दिए। नगर में अर्जुनमाली की इस नित्य हत्या-क्रिया का बहुत भय छा गया। कोई भी नगरी के बाहर जाता नहीं था। यदि कोई बिना इच्छा भी किमी काम आदि के लिए बाहर चला जाता और अर्जुनमाली की आँखो मे या जाता, तो वह मारा जाता था।
इस प्रकार दिन बीतते-बीतते पाँच महीने और तेरह दिन हो गये। इतने दिनों मे १७८ पुरुषो (१६३४६=६७८) और १६३ स्त्रियो (१६३ ४१=१६३) की हत्याएं हुई। सब हत्याएँ ११४१ (९७८+१६३= ११४१) हुई।
कुदेव और सुदेव को श्रद्धा का अन्तर
इनमे पहले की सात हत्याएँ मुख्य रूप से अर्जुनमाली के कारण हुई तथा पिछली ११३४ हत्याएँ मुख्य रूप से मुद्गरपाणि