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कथा-विभाग-५ श्री अर्जुन-माली (अनगार) [२३१
उस मण्डली के छ पुरुष उस दिन मुद्रपाणि यक्ष के मन्दिर के पास हास्य-विनोद आदि कर रहे थे। उन्होंने अर्जुन के साथ वन्धुमती को आते देखा। उसके सौंदर्य और रूप के लोभी बनकर उन्होंने परस्पर यह निर्णय किया कि 'हम अर्जुनमाली को बाँधकर इस सून्दरी को अवश्य भोगेंगे।' पापी लोग सदा ही जहाँ-कही कुछ ऐसा देखते हैं, पाप का निश्चय कर लेते है। वे छहो अपने निर्णय की पूर्ति के लिए मन्दिर के कपाटो के पीछे लुक-छिपकर चुपचाप खडे हो गए ।
अर्जुनमाली को इसकी कुछ भी जानकारी नही हुई। उसके हृदय मे एकमात्र मुद्रपाणि यक्ष की पूजा का ही विचार चल रहा था। जब वह मन्दिर मे प्रवेश करने लगा, तब वे छहो एक साथ बडी शीघ्रता से कपाटो से बाहर निकल पाए और सबने मिलकर अर्जुनमालो को पूरा पक्ड लिया। फिर उन्होने अर्जनमाली के हाथ-पैर तथा सिर को उल्टा घुमाकर बाँधा और उसे एक ओर डाल दिया। पीछे वे छहो बन्धुमती को भोगने लगे। अपने पति को कष्ट मे और अपने शील को भग होता देखकर बन्धुमती चिल्लाई नही, जिससे कि दूसरे लोग सहायता के लिए आकर अर्जुनमाली को और उसे छुड़ा सके। वह स्वय अपनो. शील-रक्षा के लिए भागी भी नही, परन्तु वह व्यभिचारिणी उन व्यभिचारियो के साय व्यभिचार मे लग गई।
अर्जुनमालो को क्रोध
अर्जुनमालो को यह देखकर बहुत क्रोध आया। 'अरे ! ये दुष्ट कितने पापी है कि, छहो ने मिलकर मुझे पकडकर, बाँधकर एक ओर डाल दिया और मेरी ही ऑखो के सामने इस