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२२० ] जैन सुवोध पाठमाला-भाग १ जा सकती। तुम सुकुमार हो, सुख मे पले हो, अतः तुमसे ऐसी दीक्षा नही पल सकेगी। इसलिए वेटा । तुम दीक्षा न लो।' मेघकुमार ने कहा-'माता-पिता । ये सव वाते कायरो की हैं। जो वीर पुरुष मन मे धार लेते है, उनके लिए कुछ भी कठिन नहीं होता।'
दोक्षा जब माता-पिता अनुकूल या प्रतिकूल किसी भी प्रकार को बातो से पुत्र को रोकने में सफल नही हुए, तो उन्होने मेषकुमार को अनिच्छापूर्वक प्राज्ञा दी और निष्क्रमण (दोक्षा) महोत्सव मनाया। एक लाख रुपये देकर नाई से मेघकूमार के दीक्षा के योग्य गिखा के बाल रख कर शेष बाल कटवाये। उन बालो को महारानी ने मेघकुमार की अन्तिम स्मृति के रूप में अपने पास सुरक्षित रक्खे। फिर दो लाख रुपये देकर मेघकूमार के लिए रजोहरण और पात्र मोल लिये। फिर सहस्र पुरुप मिलकर उठावे-ऐसी शिविका (पालकी) मे बिठाकर मेघकुमार को भव्य दीक्षा-यात्रा निकाली।
भगवान् के पास पहुँचकर वहुत रोते हुए माता-पिता ने मेघकुमार को भगवान् को शिष्य-रूप मे सौंप दिया। तब मेघकुमार ने अत्यन्त वैराग्य के साथ स्वय सभी बहुमूल्य सासारिक अलकार उतार दिये और साधू-वेष धारण किया। उस समय माता-पिता ने मेवकुमार को दोक्षा को भली-भांति दृढतापूर्वक पालने का उपदेश दिया और 'हम भी कभी दीक्षित बने-ऐसा शुभ मनोरथ (मन की अभिलाषा) प्रकट किया।
उसके पश्चात् मेघकुमार ने भगवान् से कहा-'भगवन् ! यह सारा ही ससार दुख-अग्नि से अत्यन्त जल रहा है। जिस प्रकार गृहस्थ अपने घर में आग लगने पर उसमे से