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६] जैन सुबोव पाठमाला--भाग १ वन्दामि-वन्दना-स्तुति करता हैं। नमसामि नमस्कार करता हूँ। सकारेमि= सत्कार करता हूँ। सम्मारणेमि = सम्मान करता हूँ। कल्लारणं = (आप) कल्याण रूप है। मगलं मगल रूप हैं। देवयं देव रूप है। चेइय-ज्ञान रूप है। पज्जुवासामि= पर्युपासना करता हूँ। मत्थएण-मस्तक से । वन्दामि-वन्दना करता हूँ।
पाठ ४ चौथा तिक्खुत्तो प्रश्नोत्तरी
प्र० • नमस्कार की विशेप विधि क्या है ? उ.. पाँचो अङ्ग झुकाकर नमना। प्र०. पाँच अङ्ग कौन-कौनसे ? ३०: दो घुटने, दो हाथ और एक मस्तक । प्र० : पाँच अङ्ग कैसे झुकाना चाहिए ? उ०: पहले तीन वार प्रदक्षिणा करना चाहिए। पीछे दोनो
घुटनो को भूमि पर झुकाने के लिए दोना हाथो को भूमि पर रखना चाहिए। पीछे दोनो घुटने भूमि पर टिकाना चाहिए। पीछे दोनो हाथ जोडकर ललाट पर लगाते हुए स्तुति आदि करना चाहिए। पीछे जुडे हुए दोनो हाथो सहित मस्तक को भूमि तक झुकाना चाहिए। इस प्रकार पाँचो अङ्ग झुकाना चाहिए।