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पाठ ४-तिक्खुत्तो प्रश्नोत्तरी
प्र. प्रदक्षिणा के कुछ दृष्टान्त दीजिए। उ० १ मन्दिरो मे मूत्ति-पूजा के समय जैसी आरती उतारी
जाती है. इस प्रकार प्रदक्षिणा देनी चाहिए। २ तोल को बताने वाले यन्त्रो के काँटे या गति को बताने वाले (वाहनो मे लगे) यन्त्रो के कॉटे जिस प्रकार घूमते हैं, वैसी प्रदक्षिणा देनी चाहिए। ३ चक्रो मे गोलाकृति वाक्य जैसे लिखे जाते है, वैसी प्रदक्षिणा देनी चाहिए।
कोई-कोई इससे ठीक उल्टी प्रदक्षिणा मानते है। __ प्रदक्षिणा किसे कहते हैं ? उ० पहले दोनो हाथो को गले के पास जोड़ना। फिर उन्हे
वन्दनीय के दाये और अपने बाये कानो की ओर ऊपर ले जाना। पश्चात् शिर पर ले जाना। पश्चात् वन्दनीय के बाये और अपने दायें कानो की ओर नीचे लाना। पश्चात् उन्हे गले तक ले आना। इस प्रकार जुडे हाथो को चक्र के आकार गोल आवर्तन देकर (धुमाकर) मस्तक पर स्थापन करना और जुडे हाथो सहित मस्तक को कुछ झुकाना। प्रदक्षिणा क्यो की जाती है ? जिन्हे हम नमस्कार करते हैं, वे हमारे केन्द्र बने और हमारी प्रात्मा उनकी आज्ञा की परिधि मे रहे- यह
श्रद्धा और भावना प्रकट करने के लिए। प्रा. प्रदक्षिणा तोन बार क्यो की जाती है ? उ० १ अपनी पहली बताई हुई श्रद्धा और भावना की
दृढता प्रकट करने के लिए। २ वन्दनीय मे रहे हुए जान, दर्शन, चारित्र इन तीनो गुणो को वन्दन करने के लिए।
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