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________________ कथा-विभाग-३ महासती श्री चन्दनबालाजी जब तक यह रोग अधिक न बढे, उसके पहले ही इसकी औषधि कर लेना बुद्धिमानी होगी।' कष्ट के साथ तीन दिन तलघर में एक समय सेठ बाहर गये हुए थे। मूला ने वह उचित अवसर समझा। उसने १ नाई को बुलवाया और चन्दना के केश कटवा डाले। २. आभूषण उतार कर हाथो मे हथकडी तथा ३. पैरो मे बेडी डाल दी और ४. कपडे उतार कर उसे काछ पहना दी। इस प्रकार दुर्दशा करके तथा ५ उसे मारपीट कर उसने चन्दनबाला को ६ भोयरे मे डाल दी और ऊपर ताला लगा दिया। घर के सब दास-दासियो से कह दिया कि 'कोई भी सेठ को यह बात न बतावे। यदि कोई बतावेगा, तो मैं उसके प्राण ले लंगी।' इतना सब करके वह अपने मायके (पीहर) चल दी। उड़द के बाकुले सेठजी दुपहर को भोजन के लिए घर लौटे। दासदासियो से पूछा 'सेठानी कहाँ हैं ? और चन्दना कहाँ है ?' उन्होंने 'सेठानी मायके गई हैं'-यह तो बता दिया, परन्तु मृत्यु के भय से किसी ने भी चन्दना की स्थिति नहीं बताई। सेठजी ने सोचा 'ऊपर होगी या कही खेलती होगी।' वे भोजन करके चले गये। सन्ध्या को फिर पूछा- 'चन्दना कहाँ है ?' पर किसी ने 'उत्तर नहीं दिया। सेठ ने सोचा-'अाज शीघ्र सो गई होगी।' इस प्रकार सेठ को प्रश्न करते और सोचते तीन दिन बीत गये। चौथे दिन सेठजी से रहा न गया। उन्होंने ' दास-दासियो से कहा- 'यदि कोई जानता हुआ भी
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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