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__ २१० ] जन सुबोध पाठमाला-भाग १
चन्दना की स्थिति नही वतावेगा, तो याद रखो, उसके प्रारण नहीं रहेगे।'
यह सुनकर एक बुड्ढी दासी ने सोचा 'दोनो ओर प्राणो का सङ्कट है। बताऊँ, तो सेठानी की ओर से तथा न बताऊँ, तो सेठ की ओर से। अस्तु, मै बुड्डी हो ही गई हूँ, यदि मेरी मृत्यु से भी चन्दना वच जाय, तो उस सुगील कन्या को बचा लेना चाहिए।' यह विचार कर उसने सेठ को सारी बात बता दी। वह स्थिति सुन कर सेठजी को बहुत ही दुख हुआ। उन्होने पत्थर से ताला तोडा और चन्दना को भोयरे से वाहर निकालो, तथा उससे दु ख को वाते पूछने लगे। चन्दना ने कहा-'पिताजी। मुझे कडी भूख लगी है। मैं तीन दिन से भूखी हूँ, पहले मुझे कुछ भोजन ला दो।' उस समय केवल उडद के वाकुले ही तयार थे। सेठजी ने वे सूपडे मे रखकर भोजन के लिए उसे दे दिये और उसकी हथकडी-वेडी तुःवाने के लिए लुहार को बुलाने स्वय ही लुहार के यहाँ चल दिये।
. आँखो में आँसू चन्दना भूप मे रहे हुए उन उडद के वाकुलो को लेकर देहली मे पहुँची। एक पैर देहली के भीतर तथा एक पैर देहली के बाहर रख कर बारसाख (द्वारगाखा) का सहारा लेकर खड़ी हो गई। उस दगा मे उसे अपनी सारी पिछली वात स्मरण मे आने लगी। 'कहाँ तो मेरो माता धारिणी
और कहाँ यह मूला? कहाँ मेरा वह राजघराना ? और कहाँ यहाँ भोयरे मे तीन दिन तक कारागृह (जेल) जेसी मेरी यह दुर्दगा? अरे, रे ! मैंने पूर्व भव मे न जाने कैसे कर्म कमाये ? जिनका मुझे ऐसा फल भुगतना पड़ रहा है। मैं सोचती थी