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२०४ ] जन सुवाघ पाठमाला-भाग १
३. महासती श्री चन्दनबालाजी
देशादि
'चम्पानगरी' मे महाराजा 'दधिवाहन' राज्य करते थे। उनकी महारानी का नाम 'धारिणी' था। धारिणी की कुंख से एक पुत्री का जन्म हुआ। उसका नाम रखा गया 'वसुमति'।
वसुमति वडी हुई। वहवहुत सुलक्षणा थी। रूप भी उसका बहुत सुन्दर था। साथ ही वह शीलवती भी थी। गुणवती होने से वह सवको प्यारी लगती थी। राजा-रानी उसे अपना जीवन-धन समझते थे। 'वसुमति' का अर्थ ही होता है 'धनवाली'। प्रेम के कारण राजा-रानी वसुमति को वहुत सुख मे रखते थे। उसे उष्ण वायु भी नही लगने देते थे।
पिता का विरह
'कौशाम्बी' नगर मे 'शतानीक' राजा राज्य करता था। उसकी महारानी का नाम था 'मृगावती' । दधिवाहन, शतानीक राजा का सगा साढू था। दोनो की रानियाँ आपस मे वहिनें थी। फिर भी शतानीक ने एक समय छुपी तैयारी करके रात को (नौ सेना से) चम्पानगरी पर आक्रमण कर दिया। दधिवाहन को इस आक्रमण का पहले कुछ ज्ञान न हुआ। अचानक हुए आक्रमण का वे पूरा सामना नही कर सके । अन्त मे युद्ध में उनकी हार हुई। इसलिए दधिवाहन को वन में भाग जाना पड़ा। राजा शतानीक अपनी इस दुर्विजय से बहुत प्रसन्न हुआ। उसने अपने सैनिको और सुभटो को इस विजय के उपलक्ष्य मे