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कथा - विभाग- २. गरवर श्री इन्द्रभूतिजी
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श्री इन्द्रभूतिजी को भगवान् महावीरस्वामीजी 'गोतम ।' कहकर बुलाते थे, इसलिए ये गौतमस्वामीजी के रूप मे प्रसिद्ध हुए | बोलो, श्री गौतमस्वामी की जय !
॥ इति २. गणधर श्री इन्द्रभूतिजी की कथा समाप्त ॥
शिक्षाएँ
१ तीर्थंकर के चरणों मे सभी झुक जाते हैं । २. जीवादि सभी तत्व वास्तविक है । ३ सदा ही ज्ञान-पिपासा बनाये रक्खो । ४. ज्ञान के साथ तप भी करो ।
५. नत्र, मधुर, स्वधर्मी - वत्सल, मर्यादापालक आदि गुरणयुक्त बनो ।
प्रश्न
१. श्री इन्द्रभूति के देशादि का परिचय दो।
२ श्री इन्द्रभूतिजी भगवान् के शिष्य कब व कैसे बने ? ३. श्री गौतमस्वामीजी से मिलने वाली शिक्षाएँ सप्रसग
लिखिये |
४ श्री गौतमस्वामीजी और भगवान् महावीरस्वामीजी का परस्पर संबंध बताओ ।
५. श्री गौतमस्वामीजी के श्रायु-विभाग का वर्णन करो ।