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२०२ ] जन सुबोध पाठमाला-भाग १ अपने साथ मे भगवान् के चरणो में लाये। स्वधर्मी बनने वाले के प्रति वे ऐसा आदर करते थे !
मर्यादा-पालक श्री गौतमस्वामी मर्यादापालक भी थे। एक बार वे स्वय जिस श्रावस्ती नगरी मे पधारे, उसी नगरी के दूसरे बगीचे मे भगवान् पाश्र्वनाथ की परम्परा के प्राचार्य श्री केशीकुमार श्रमण भी पधारे हुए थे। उनसे श्री गौतमस्वामी कई अपेक्षाओं से बडे थे, परन्तु उन्होने सोचा कि 'मैं २४ वे तीर्थकर का शिष्य हैं और वे २३ व तीर्थंकर की परम्परा के है, इसलिए वे वडे कुल के है और मैं छोटे कुल का हूँ। इसलिए मुझे उनकी सेवा मे जाना चाहिए।' इस प्रकार विचार कर वे स्वय अपने शिष्यो सहित उनकी सेवा में गये। ऐसे थे गौतमस्वामी मर्यादा के पालक !
आयु प्रादि श्री इन्द्रभूतिजी के कितने गुण वाये जाये ? वे गुणों के भंडार थे। जैन साहित्य मे उनके इतिहास के विषय में वहुत-कुछ लिखा गया है।
श्री इन्द्रभूतिजी ५० वर्ष की आयु में दीक्षित हुए । ३० वर्ष तक छद्मस्थ (ज्ञानावरणीयादि चार कर्म सहित) रहे। भगवान् महावीरस्वामी का दीपावली की जिस रात्रि को निर्वाण हुया, उसी रात्रि को गौतमस्वामीजी को केवलज्ञान उत्पन्न हृया। वे बारह वर्ष तक केवलजानी रहे । कुल ६२ (५०+ ३०-१२-९२) वर्ष की आयु भोगकर श्री गौतमस्वामी मोक्ष पधारे और मुक्ति मे पहुँच कर श्री भगवान महावीरस्वामी के समान बन गये।